शुक्रवार, 5 जून 2020

*अनिश्चित भय*

अजब है खेल कुदरत का गज़ब की बात है देखो,
कि इन्साँ एक दूजे से यहाँ परहेज़ करता है।
कभी रहता था जो मश्गूलसामाजिक मसायल में,
वही इन्सानअब अपनों को मिलने से भी डरता है।
किसी ने स्वप्न में सोचा  थाये दिन भी आयेंगे,
घरों में क़ैद होकर के सभीखुद को बचायेंगे।
कोई आहट भी बाहर सेअगर सुनने में आयेगी,
तो ऐसी आहटों से ख़ुद  ख़ुद घबरा से जायेंगे।
पर ये सच हुआऔर अब हुई सबकी ये हालत है,
कि खाने-पीने की चीजें भी अब संत्रास देतीं हैं।
कभी महफ़िल  मित्रों के बिनाजो जी  पाते थे,
उन्हें ये दूरियाँअब जीने का एहसास देतीं हैं।
बड़े निष्ठुरनियति के फैसलेमानव के जीवन में,
जिन्हें स्वीकार करने कोसदा तैयार रहना है।
पड़े जब भी ज़रूरतख़ुद को अनुशासित बना कर के,
समर जीवन कायूँ निर्भीक रह कर पार करना है।
                       
दीपक जोशी
05/06/2020

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