अजब है खेल कुदरत का गज़ब की बात है देखो,
कि इन्साँ एक दूजे से यहाँ परहेज़ करता है।
कभी रहता था जो मश्गूल, सामाजिक मसायल में,
वही इन्सान, अब अपनों को मिलने से भी डरता है।
किसी ने स्वप्न में सोचा न था, ये दिन भी आयेंगे,
घरों में क़ैद होकर के सभी, खुद को बचायेंगे।
कोई आहट भी बाहर से, अगर सुनने में आयेगी,
तो ऐसी आहटों से ख़ुद ब ख़ुद घबरा से जायेंगे।
पर ये सच हुआ, और अब हुई सबकी ये हालत है,
कि खाने-पीने की चीजें भी अब संत्रास देतीं हैं।
कभी महफ़िल व मित्रों के बिना, जो जी न पाते थे,
उन्हें ये दूरियाँ, अब जीने का एहसास देतीं हैं।
बड़े निष्ठुर, नियति के फैसले, मानव के जीवन में,
जिन्हें स्वीकार करने को, सदा तैयार रहना है।
पड़े जब भी ज़रूरत, ख़ुद को अनुशासित बना कर के,
समर जीवन का, यूँ निर्भीक रह कर पार करना है।
दीपक जोशी
05/06/2020
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