बहुत दोहन किया था, इस धरा का, मूढ़ मानव ने,
कुपित होकर विधाता ने, बटन "रीसैट" दबा डाला।
ग़लत फहमी थी जो मैं चाहता हूँ, लेके रहता हूँ,
उसी अभिमान को, हल्के से झटके में मिटा डाला।
अब ये हाल है, कि जान के भी पड़ गये लाले,
महामानव जो समझा था, उसीने भ्रम हटा डाला।
बेख़ौफ़ होके, घूमता - फिरता था दुनियाँ में,
उसी मानव को घर की क़ैद में, असहाय कर डाला।
कि तोड़े थे उसीने ज़िन्दगी के, हर नियम संयम,
उन्हैं ही फिर से अपनाने को, उसको बाध्य कर डाला।
अब आगे ज़िन्दगी में, और भी संयम जरूरी है,
कि क़ुदरत ने विधानों को, पुनः अनिवार्य कर डाला।
दीपक जोशी
28/05/2020
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