गुरुवार, 28 मई 2020

*क़ुदरत का विधान*

बहुत दोहन किया थाइस धरा कामूढ़ मानव ने,
कुपित होकर विधाता नेबटन "रीसैटदबा डाला।
ग़लत फहमी थी जो मैं चाहता हूँलेके रहता हूँ,
उसी अभिमान कोहल्के से झटके में मिटा डाला।
अब ये हाल हैकि जान के भी पड़ गये लाले,
महामानव जो समझा थाउसीने भ्रम हटा डाला।
बेख़ौफ़ होकेघूमता - फिरता था दुनियाँ में,
उसी मानव को घर की क़ैद मेंअसहाय कर डाला।
कि तोड़े थे उसीने ज़िन्दगी केहर नियम संयम,
उन्हैं ही फिर से अपनाने कोउसको बाध्य कर डाला।
अब आगे ज़िन्दगी मेंऔर भी संयम जरूरी है,
कि क़ुदरत ने विधानों कोपुनः अनिवार्य कर डाला।
                      
दीपक जोशी                
28/05/2020

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