'लौक डाउन' की कथा सुनाऊँ, सबसे व्यथा निराली है,
बच्चों ने, घर में बन्द-बन्द, हालत पतली कर डाली है।
सुबह-शाम बूढ़े जब भी, घूमने बाहर जाते थे,
अपने संग छोटे बच्चों को, खिलवाने लेजाते थे।
बच्चों को भी दादा-दादी, नाना-नानी भाते थे,
बच्चों के संग बूढ़ों के भी, दिन यूँ ही कट जाते थे।
इक दिन मुआ 'कोरोना' आया, अपने संग ये आफ़त लाया,
बुड्ढे और बच्चे दोनों का, बाहर जाना बन्द कराया।
उम्र का काफ़ी अन्तर है, पर फितरत एक सी होती है,
दोनों को घर से बाहर की, दुनियाँ बहुत सुहाती है।
अब घर में बन्द रहे हरदम, आपस में ही लड़ते हैं,
उर्जा से भरे हुए बच्चे, बुड्ढों पर भारी पड़ते हैं।
बच्चों के मम्मी-पापा का वर्क, होम से चलता है,
दिन भर बच्चों का ताण्डव, बुड्ढों के सर निकलता है।
अब तो यही दुआ ईश्वर से, खतम 'कोरोना' का हो खेल,
बच्चे-बुड्ढे जाँए बाहर, फिर से हो दोनोें में मेल।
दीपक जोशी
10/06/2020
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