बुधवार, 10 जून 2020

*बाल-वृद्ध संघर्ष*

'लौक डाउनकी कथा सुनाऊँसबसे व्यथा निराली है,
बच्चों नेघर में बन्द-बन्दहालत पतली कर डाली है।
सुबह-शाम बूढ़े जब भीघूमने बाहर जाते थे,
अपने संग छोटे बच्चों कोखिलवाने लेजाते थे। 
बच्चों को भी दादा-दादीनाना-नानी भाते थे,
बच्चों के संग बूढ़ों के भीदिन यूँ ही कट जाते थे।
इक दिन मुआ 'कोरोनाआयाअपने संग ये आफ़त लाया,
बुड्ढे और बच्चे दोनों काबाहर जाना बन्द कराया।
उम्र का काफ़ी अन्तर हैपर फितरत एक सी होती है,
दोनों को घर से बाहर कीदुनियाँ बहुत सुहाती है।
अब घर में बन्द रहे हरदमआपस में ही लड़ते हैं,
उर्जा से भरे हुए बच्चेबुड्ढों पर भारी पड़ते हैं।
बच्चों के मम्मी-पापा का वर्कहोम से चलता है,
दिन भर बच्चों का ताण्डवबुड्ढों के सर निकलता है।
अब तो यही दुआ ईश्वर से खतम 'कोरोनाका हो खेल,
बच्चे-बुड्ढे जाँए बाहरफिर से हो दोनोें में मेल।
                   
दीपक जोशी
10/06/2020

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें