शनिवार, 8 अगस्त 2020

*जीवन की सच्चाई*

हो चाहे शानो-शौकतया हो मुफलिसी ही,  

पर्याप्त से अधिकताहर चीज़ की ज़हर है।

दम्भी हो या सरल होसफल हो या विफल हो,

क्रोध - नम्रता होअमृत हो या गरल हो।

प्रेम या घृणा होआसक्ति या अरुचि हो,

पर्याप्त से अधिकताहर चीज़ की ज़हर है।

ज़रूरत की हर वज़ह को पैदा किया ख़ुदा ने,

है सृष्टि को बनायाइस सोच में अमल कर।

के इन्सान जो भी चाहेवो ले सके यहीं से,

पर दी उसे हिदायतकि ले उसे सम्भल कर।

लालच में आके उसनेतोड़े नियम-धरम जो,

तब ख़ुद  ख़ुद वो जानाकि सृष्टि ही कहर है। 

पर्याप्त से अधिकताहर चीज़ की ज़हर है।

इंसाँ को क्या ज़रूरीये तय किया ख़ुदा ने,

होते ही उसके पैदाज़िन्दगी बसर को।

क्या ठीक और ग़लत क्याइस सबकी दी समझ तो,

सद्भावना दी उसकोऔरों की क़दर को।

जिसने इसे भुलायाउसकी कठिन डगर है,

पर्याप्त से अधिकताहर चीज़ की ज़हर है।

               

दीपक जोशी

08/08/2020

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