हो चाहे शानो-शौकत, या हो मुफलिसी ही,
पर्याप्त से अधिकता, हर चीज़ की ज़हर है।
दम्भी हो या सरल हो, सफल हो या विफल हो,
क्रोध - नम्रता हो, अमृत हो या गरल हो।
प्रेम या घृणा हो, आसक्ति या अरुचि हो,
पर्याप्त से अधिकता, हर चीज़ की ज़हर है।
ज़रूरत की हर वज़ह को पैदा किया ख़ुदा ने,
है सृष्टि को बनाया, इस सोच में अमल कर।
के इन्सान जो भी चाहे, वो ले सके यहीं से,
पर दी उसे हिदायत, कि ले उसे सम्भल कर।
लालच में आके उसने, तोड़े नियम-धरम जो,
तब ख़ुद ब ख़ुद वो जाना, कि सृष्टि ही कहर है।
पर्याप्त से अधिकता, हर चीज़ की ज़हर है।
इंसाँ को क्या ज़रूरी, ये तय किया ख़ुदा ने,
होते ही उसके पैदा, ज़िन्दगी बसर को।
क्या ठीक और ग़लत क्या, इस सबकी दी समझ तो,
सद्भावना दी उसको, औरों की क़दर को।
जिसने इसे भुलाया, उसकी कठिन डगर है,
पर्याप्त से अधिकता, हर चीज़ की ज़हर है।
दीपक जोशी
08/08/2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें