शनिवार, 18 जुलाई 2020

*भय और आध्यात्म*

प्राणिमात्र के मूल गुणों मेंभय ही ऐसा तत्व है,
जिसके रहने से उन सब मेंअनुशासन का सत्व है।
भय विहीन जीवन की तोकल्पना डराने वाली है,
भय के होने से ही तोसर्वत्र सुखों की लाली है।
भय नहीं होता तो सोचेंकैसी हालत हो जाती।
यत्र-तत्र-सर्वत्रअराजकता ही सृष्टि में मदमाती।
जीवन सुगम चलाने कोभय का होना तो जरूरी है,
पर अत्याधिक भय का हो जानामानव में कमजोरी है।
भय अधिक हो जाने सेरोगों का कारण बनता है,
मानव शरीर के साथ उसेमस्तिष्क भी धारण करता है।
विपरीत अवस्थाओं में जबसंयम की ज़रूरत होती है,
उस वक्त अधिक भय के कारणबेकार फजीहत होती है।
मन संयम खोकर रख देताऔर दहशत घर कर लेती है,
जिसके कारण उत्पन्न स्थितिविक‌राल रूप धर लेती है। 
भय के नियंत्रण के लिएमन का संधान ज़रूरी है,
भय की अधिकता का कारणआध्यात्म ज्ञान से दूरी है।
भौतिकता गर देती भय तोआध्यात्म मनोबल देता है,
बेहतर जीवन यापन कोइक अद्भुत संबल देता है।
आध्यात्म और जीवन कामेल बहुत निराला है,
जिसमें ये मौजूद रहेवो ही हिम्मतवाला है।
                 
दीपक जोशी
18/07/2020

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