बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

*रिश्ते*

कुछ अलग ही बात है इन रिश्तों की,

निभे तो सम्भले रहेंवरना बिखर जाते हैं।

इनके रहते हुए तो, ग़ैर भी लगते अपने,    

ये  हों तो फिरसगे भी मुँह चुराते हैं।

बड़ी एहमियत हैज़िन्दगी में रिश्तों की,

बग़ैर इनकेकहाँ लोग सुकूँ पाते हैं।

उलझ गया हो जब कभी भी ज़िन्दगी का सफ़र,

ऐसे हर वक्त मेंरिश्ते ही काम आते हैं।

हर सफल रिश्ते की विश्वास है मज़बूत कड़ी,

ज़रा सी ठेस से बरबस ये दरक जाते हैं। 

जब भी देखा गया हैरिश्तों को पिघलते हुए,

भूल और चूक हीकारण में नज़र आते हैं।

ग़लतफहमियाँ  आने दें रिश्तों में कभी,

इन्हीं के सबब सेरिश्ते ये बिगड़ जाते हैं।

 जताऐं कभी एहसान यूँ मदद करके,

इससे उपकारों के अंजाम बिखर जाते हैं।

                

दीपक जोशी 

07/10/2020

शनिवार, 29 अगस्त 2020

*विश्वास*

हर नई सुबह इकइंतज़ार रहता है,

दिल की इस सोच काखुद से करार रहता है,

कि ये ज़िन्दगी कभी तो फिरढर्रे पै  ही जायेगी,

बेख़ौफ़ जीने की ललकज़र्रे पै  ही जायेगी।

खिल उठेंगे फूलखुशियों से भरे जीवन में फिर,

स्वच्छन्द विचरण कर सकेंगे लोगइस उपवन में फिर,

रे मन ज़रा धीरज तो धरइस मुफलिसी के दौर में,

अच्छा समय भी आयेगामुश्किल भरी इस ठौर में।

बुरे भी और भले भी हैं समयये वक्त की दहलीज़ है,

एक आना एक जानाही नियति की रीति है,

बस धैर्य ही एकमात्रइसका कर सका है सामना,

जिसने इसे धारण कियाउसकी सफल सब कामना।

धैर्य देता है मनोबलधैर्य से हिम्मत यहाँ

धैर्य जिसने खो दियाउसको सफलता फिर कहाँ,

समय विपरीत हैउससे वफ़ा मुश्किल बढ़ाएगी,

बस इक सावधानीज़िन्दगी पटरी में लाएगी।

              

दीपक जोशी

29/08/2020


शनिवार, 8 अगस्त 2020

*जीवन की सच्चाई*

हो चाहे शानो-शौकतया हो मुफलिसी ही,  

पर्याप्त से अधिकताहर चीज़ की ज़हर है।

दम्भी हो या सरल होसफल हो या विफल हो,

क्रोध - नम्रता होअमृत हो या गरल हो।

प्रेम या घृणा होआसक्ति या अरुचि हो,

पर्याप्त से अधिकताहर चीज़ की ज़हर है।

ज़रूरत की हर वज़ह को पैदा किया ख़ुदा ने,

है सृष्टि को बनायाइस सोच में अमल कर।

के इन्सान जो भी चाहेवो ले सके यहीं से,

पर दी उसे हिदायतकि ले उसे सम्भल कर।

लालच में आके उसनेतोड़े नियम-धरम जो,

तब ख़ुद  ख़ुद वो जानाकि सृष्टि ही कहर है। 

पर्याप्त से अधिकताहर चीज़ की ज़हर है।

इंसाँ को क्या ज़रूरीये तय किया ख़ुदा ने,

होते ही उसके पैदाज़िन्दगी बसर को।

क्या ठीक और ग़लत क्याइस सबकी दी समझ तो,

सद्भावना दी उसकोऔरों की क़दर को।

जिसने इसे भुलायाउसकी कठिन डगर है,

पर्याप्त से अधिकताहर चीज़ की ज़हर है।

               

दीपक जोशी

08/08/2020

शनिवार, 18 जुलाई 2020

*भय और आध्यात्म*

प्राणिमात्र के मूल गुणों मेंभय ही ऐसा तत्व है,
जिसके रहने से उन सब मेंअनुशासन का सत्व है।
भय विहीन जीवन की तोकल्पना डराने वाली है,
भय के होने से ही तोसर्वत्र सुखों की लाली है।
भय नहीं होता तो सोचेंकैसी हालत हो जाती।
यत्र-तत्र-सर्वत्रअराजकता ही सृष्टि में मदमाती।
जीवन सुगम चलाने कोभय का होना तो जरूरी है,
पर अत्याधिक भय का हो जानामानव में कमजोरी है।
भय अधिक हो जाने सेरोगों का कारण बनता है,
मानव शरीर के साथ उसेमस्तिष्क भी धारण करता है।
विपरीत अवस्थाओं में जबसंयम की ज़रूरत होती है,
उस वक्त अधिक भय के कारणबेकार फजीहत होती है।
मन संयम खोकर रख देताऔर दहशत घर कर लेती है,
जिसके कारण उत्पन्न स्थितिविक‌राल रूप धर लेती है। 
भय के नियंत्रण के लिएमन का संधान ज़रूरी है,
भय की अधिकता का कारणआध्यात्म ज्ञान से दूरी है।
भौतिकता गर देती भय तोआध्यात्म मनोबल देता है,
बेहतर जीवन यापन कोइक अद्भुत संबल देता है।
आध्यात्म और जीवन कामेल बहुत निराला है,
जिसमें ये मौजूद रहेवो ही हिम्मतवाला है।
                 
दीपक जोशी
18/07/2020