सोमवार, 16 मई 2016

Fan

यहाँ पर ना तो फैन मूवी की बात होने वाली है और ना ही पंखे की। यहाँ तो बस उस फोटो की बातें होंगीं जो मैंने कल यूँही लेली थी। कल मैंने दो फोटो लीं जिसमें पहली फोटो को ध्यान से देखा तो पता चला के हम अनजाने में ही सही पर HP के फैन हैं और
दूसरी फोटो को देखा तो पता चला कि अब हमलोग धीरे-धीरे APPLE के फैन होते जा रहे हैं। :)

शुक्रवार, 13 मई 2016

झट-पट लाल मिर्च का अचार (Instant red chilli pickle)


यूँ तो लाल मिर्च का अचार बनाने की कई विधियाँ हैं पर आज मैं आप लोगों को इस अचार को बनाने कि सबसे सरल विधि के बारे में बताने जा रही हूँ।

सामग्री:
6-8 Red peppers (बड़ी और मोटी लाल मिर्चें) 
4 Green chilli (तीखी हरी मिर्चें)
4 tbsp Readymade pickle masala (यहाँ पर मैंने अशोक मसाला इस्तमाल किया है। आप शान या कोई भी ब्रैंड का मसाला इस्तमाल कर सकते हैं।)
1 tbsp Amchoor powder
1/4 cup Mustard oil
3 tbsp Lemon juice
Salt to taste

बनाने की विधि:
१- लाल व हरी मिर्चों को अच्छे से धो लें और इन्हें साफ़ कपड़े से पोछ लें। याद रखें थोड़ा सा भी पानी अगर रह जाता है तो आचार ख़राब हो जाता है।
२- लाल मिर्चों को लम्बा-लम्बा काट लें और हरी मिर्चों को बारीक काट लें।
३- कड़ाही में तेल गरम होने पर उसमें कटी हुई लाल मिर्च डाल कर उसे तब तक मध्यम आँच में चलाएं जब तक मिर्चें थोड़ी नरम न हो जाऐ।
४- अब इसमें बारीक कटी हुई हरी मिर्च डाल दें।
५- थोड़ी देर चलाने के बाद इसमें अचार मसाला व अमचूर पाउडर मिला कर इसे दो से तीन मिनट तक पकाऐं। ध्यान रखें ज़ादा पकाने से मसाला जल सकता है। अन्त में इसमें नीबू का रस मिला लें तथा इसे हल्की आँच में ढक कर तब तक पकाएं जब तक मिर्चें नीबू का रस सोख न लें।
६- इस लाल मिर्च के अचार को आप एक कटोरे में निकाल के फ्रिज में रख सकते हैं। अगर आपकी मिर्चें सही से सूखी ना हो तो भी फ्रिज में रखने से वह ख़राब नहीं होंगी।

रस (Rus)


रस को अंग्रेजी में सूप कहना ही सही होगा क्योँकि इसे उस पानी से बनाया जाता है जिसमे दालों को उबाला गया हो। सुनने में थोड़ा अजीब है पर खाने में इसका जवाब नहीं। इसे खाने का कोई विशेष मौसम नहीं होता पर हमारे यहाँ अक्सर इसे जाड़ों में बनाया जाता है। वैसे तो इसे चावल के साथ खाया जाता है पर मुझे यह रोटी के साथ जादा पसंद है।

सामग्री:
1 cup Gahat
½ cup Kala chana
½ cup Bhatt
½ cup Rajma
½ cup kabuli chana
1 cup Whole urad
½ cup Lobia
½ cup Beans
1 tsp Cumin powder (जीरा)
1 tsp Coriander powder (धनिया)
1 tsp Garam masala
½ tsp Red chilli powder (लालमिर्च)
2 tbsp Ginger and garlic paste (अदरक-लहसुन पेस्ट)
A pinch of hing, turmeric powder (हल्दी)
3 pinches of clove powder (लोंग) and pepper powder (कालीमिर्च)
2-3 tbsp ghee
Salt to taste

बनाने की विधि:
१- साबुद दालों को रात से ही भिगो दें और उन्हें अच्छे से धो लें।  
२- चावल को भी रात से भिगो दें और उसे ग्राइंडर में बहुत महीन पीस लें।
३-  कुकर में दुगने पानी के साथ इन दालों को उबाल लें तथा उबलने पर इन्हें कुकर में ही मसल लें और छलनी की मदद से पानी और दाल के दानों को अलग-अलग कर लें। इस पानी से ही रस बनाया जाता है। 
४- अलग किये गए दाल के दानों में थोड़ा और पानी मिलाएं और उसे भी छान लें। 
५- कड़ाही में घी गरम करें फिर उसमें थोड़ी सी हींग और जीरा डाल कर चलाएं। इसमें अदरक-लहसुन का पेस्ट डालें और हल्का भूरा होने तक चलाएं। अब इसमें हल्दी, धनिया, लालमिर्च, गरम मसाला,लोंग,कालीमिर्च और नमक डाल दें। अब इस मिश्रण में दाल से अलग किया गया पानी को मिलाएं और उसमें उबाल आने दें। 
६- उबलने पर भी अगर वह गाड़ा न हो पाए तो उसमे चावल का आटा या चावल को पीस कर जो पेस्ट तैयार किया था वह डाल लेना चाहिए। इससे रस गाड़ा हो जाता है।
७- अलग किये हुए दानों में मेरी माँ बारीक कटा हुआ प्याज, नमक, मिर्च व थोड़ा सा आचार का तेल मिला कर उसके लडडू बनाती और उसे नीबू और चाट मसाले के साथ परोसती है। आप बिना लडडू  बनाये भी इसे खा सकते हैं।

गुरुवार, 12 मई 2016

काले कौआ काले घुघुित माला खाले, ले कौआ बड़, मकें दिजा सुनक घड़।

हमारे पहाड़ में घुघुतिया का त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। १४ जनवरी को जब सारा देश पतंग उड़ा कर संक्रान्ति मनाता है तब कुमाऊँ में घुघुते बना कर कौवों को बुलाया जाता है। सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है पर यही सत्य है। कुछ लोग बताते हैं कि पुराने समय में एक राजा हुआ करता था जिसके मंत्री का नाम घुघुतिया था। वह राजा का बहुत करीबी व प्रिय था। राजा बिना उसकी सहमति के कोई भी कार्य करना पसंद नहीं करता  था। पर उनको यह पता नहीं था कि घुघुतिया उनका दोस्त नहीं दुश्मन था। वह राजा को मार कर उनका साम्राज्य हड़पना चाहता था। परन्तु राजा के कौवे ने ऐसे होने न दिया और राजा को विस्तार पूर्वक सारी बातें बता दी। पहले तो राजा को विश्वास नहीं हुआ पर सत्य का पता चलते ही उन्होंने उस मंत्री को बंदी बना लिया। और सभी को आज्ञा दी कि कौवे के लिए मिठाइयां बनाई जाएँ तथा उसकी खूब खातिरदारी की जाऐ। बताया जाता है कि उसने राजा की जान बचाई तो राजा ने इनाम के रूप में इस दिन को हर साल एक पर्व के रूप में मनाया।

कुछ लोगो का मानना है कि यह बात उस समय की है जब कुमाऊ में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उसका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। उसका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नी एक मन्दिर में गए और अपनी औलाद के लिए प्रार्थना की। ईश्वर की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिसका नाम निर्भय चंद पड़ा। निर्भय को उसकी माँ प्यार से घुघुति के नाम से बुलाया करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिस में घुगरु लगे हुए थे। इस माला को पहन कर घुघुति बहुत खुश रहता था। जब वह किसी बात पर जिद्द करता तो उसकी माँ उस से कहती कि जिद्द ना कर नहीं तो में माला कौवे को दे दूंगी। उसको डराने के लिए कहती कि "काले कौवा काले घुघुति माला खाले" यह सुन कर कई बार कौवा आ जाता जिसको देखकर घुघुति जिद्द छोड़ देता। जब माँ के बुलाने पर कौवे आजाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती| धीरे धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई। उधर मंत्री जो राज पाट की उमीद लगाए बैठा था घुघुति को मारने की सोचने लगा ताकि उसी को राजगद्दी मिले। मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर षड्यंत्र रचा। एक दिन जब घुघुति खेल रहा था वह उसे चुप-चाप उठा कर ले गया। जब वह घुघुति को जंगल की ओर ले के जा रहा था तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर जोर से काँव काँव करने लगा। उस की आवाज सुनकर घुघुति जोर जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतार कर दिखाने लगा। इतने में सभी कौवे इकठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मडराने लगे। एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपट कर ले गया। सभी कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर अपने चौंच और पंजों से हमला बोल दिया। मंत्री और उसके साथी घबरा कर वहां से भाग खड़े हुए। घुघुति जंगल में अकेला रह गया और एक पेड़ के नीचे बैठ गया सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए जो कौवा हार लेकर गया था वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांग कर जोर जोर से बोलने लगा। जब लोगों की नज़रे उस पर पड़ी तो उसने घुघुति की माला घुघुति की माँ के सामने डाल दी। माला सभी ने पहचान ली और इसके बाद कौवा एक डाल से दूसरे डाल में उड़ने लगा। सब ने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जानता है। राजा और उसके घुडसवार कौवे के पीछे लग गए। कौवा आगे आगे घुड़सवार पीछे पीछे कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया। राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया और घर को लौट आया। घर लौटने पर जैसे घुघुति की माँ के प्राण लौट आए। माँ ने घुघुति की माला दिखा कर कहा कि आज यह माला नहीं होती तो घुघुति जिन्दा नहीं रहता। राजाने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया। घुघुति के मिल जाने पर माँ ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे। घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया। यह बात धीरे धीरे सारे कुमाऊ में फैल गई और इसने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मनाते हैं।

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस दिन कौवों के रूप में हमारे पूर्वज आते हैं पर कुछ लोग कहते हैं कि घुघुतिया नाम की एक चिड़िया थी। जितने मुँह उतनी बातें। अब कहानी जो कुछ भी रही हो इसके पीछे पर सच कहूँ तो यह त्यौहार हमारे पहाड़ की शान है। इस दिन शाम को घुगुते बनाये जाते हैं। मीठे आटे से बने इन घुघुतों को कई आकार दिए जाते हैं जैसे ढाल, तलवार, दाड़िम का फूल, डमरू, खजूर इत्यादि।



फिर इनको एक धागे में पिरो कर इनकी माला बनाई जाती है जिसे दूसरे दिन बच्चे अपने गले में पहन कर ज़ोर-ज़ोर से कौओं को बुलाते हैं और कहते हैं ---------
                                                 काले कौआ काले घुघुित माला खाले
                                                  ले कौआ बड़, मकें दिजा सुनक घड़।
                                                  काले कौआ काले घुघुित माला खाले॥
                                                  ले कौआ पूरी, मकें दिजा सुन छुरी।
                                                  काले कौआ काले घुघुित माला खाले॥
                                                  ले कौआ डमरू मकें दिजा सुनक घुॅघरू।
                                                  काले कौआ काले घुघुित माला खाले॥
                                                  ले कौआ पुआ मकें दिजा भल-भल धुला।
                                                  काले कौआ काले घुघुित माला खाले॥
                                                  ले कौआ ढाल मकें दिजा सुनक थाल।
                                                  काले कौआ काले घुघुित माला खाले॥

अर्थात इसमें कौवों को बुलाकर उनसे प्राथना की जाती है कि हमने जो कुछ भी उनके लिए बनाया है उसे वह स्वीकार करें। यदि उसदिन कौआ बाहर रखे गए पत्तल से कुछ खा लेता है तो उसे बहुत ही शुभ माना जाता है।वह अलग बात है कि साल का यह एक अकेला ऐसा दिन होता है जिसमेँ कौओं का इतना आदर सत्कार किया जाता है। उसदिन उसकी आवाज़ कोयल से भी मीठी लगती है। :)  इस दिन के लिए भी एक कहावत है- "काले कौआ काले घुघुित माला खाले॥ ले कौआ मिचुलो भोल बटी आले तेर गल थेचुलो " अर्थात कल से अगर तू आया तो तेरी ख़ैर नही।


उत्तराखंड में कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो इस पर्व को मनाते तो हैं पर घुघुते नहीं बनाते। सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है पर उनका मानना है कि उत्तराखंड में घुघुती नाम की चिड़िया पाई जाती है और वह लोग मांस नहीं खाते क्योंकि ब्राह्मण हैं, तो माला में सजे उस चिड़िया के आकर के बने घुघुते कैसे खा सकते हैं। मैं तो यह सोच रही हूँ कि यहाँ बच्चे गले में "बिना" घुघुति कि माला पहन कर क्या बोलते होंगे?? शायद यह कि काले कौआ काले "बिना" घुघुति की माला खाले। 

कुमाँऊनी में माताजी और पिताजी की मज़ेदार वार्तालाब Emojies के साथ।

पिताजी का मैसेज आया फोटो के साँथ, ज़ुकाम में घाम तपती माँ-


माँ को जोरों की सर्दी हुई थी पूछने पर पता चला इसका कारण भाई था। पर भाई कैसे हो सकता था वह तो गोवा में छुट्टियाँ बिता रहा था। फिर मुझे पता चला इसका कारण भाई की यह फोटो थी जो इनके कहीं से हाथ लग गयी थी।

मैं - माँ तेरी तबियत कैसी है अब ? तुझे जुकाम कैसे हुआ ? (मेरे पूछने पर माँ ने बताया-----)

माँ - बेटू गोवा में समुद्र में अठखेलिया खेल रहा है और ठन्ड लगने से जुकाम मुझे हो गया है । जैसे ही वह समुद्र से बाहर आ जायेगा मेरा जुकाम भी ठीक हो जायेगा। (इस पर पिताजी का जवाब था--------)
पा - ज्यादा झन नै समुन्दर मैं लूणि है जालै। ध्यान धरियै, भौत समुन्दर-समुन्दर करलै तो याँ हमर घराक सामुणि बै नदी लै छू।
माँ - समुद्र और नदी में हाथी और चींटीक बराबर अन्तर भै पतिदेवज्यू।
पा - पर म्यर बात म्यर बच्च समझणी तुमार समझ में नि आल शैपौ।
माँ - बच्च तुमल डरपोक बणा राखी में भयी निडर।
पा - तुम आपूणि नि कौ। तुमार सामुणि तो मैंलै भीजि बिरालु भयूँ।
हाहाहा......कभी-कभी कुछ ऐसे कंवर्सेशन्स होते हैं जिन्हें पढ़कर मन खुश हो जाता है।उनमें से यह एक था।

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