प्राणिमात्र के मूल गुणों में, भय ही ऐसा तत्व है,
जिसके रहने से उन सब में, अनुशासन का सत्व है।
भय विहीन जीवन की तो, कल्पना डराने वाली है,
भय के होने से ही तो, सर्वत्र सुखों की लाली है।
भय नहीं होता तो सोचें, कैसी हालत हो जाती।
यत्र-तत्र-सर्वत्र, अराजकता ही सृष्टि में मदमाती।
जीवन सुगम चलाने को, भय का होना तो जरूरी है,
पर अत्याधिक भय का हो जाना, मानव में कमजोरी है।
भय अधिक हो जाने से, रोगों का कारण बनता है,
मानव शरीर के साथ उसे, मस्तिष्क भी धारण करता है।
विपरीत अवस्थाओं में जब, संयम की ज़रूरत होती है,
उस वक्त अधिक भय के कारण, बेकार फजीहत होती है।
मन संयम खोकर रख देता, और दहशत घर कर लेती है,
जिसके कारण उत्पन्न स्थिति, विकराल रूप धर लेती है।
भय के नियंत्रण के लिए, मन का संधान ज़रूरी है,
भय की अधिकता का कारण, आध्यात्म ज्ञान से दूरी है।
भौतिकता गर देती भय तो, आध्यात्म मनोबल देता है,
बेहतर जीवन यापन को, इक अद्भुत संबल देता है।
आध्यात्म और जीवन का, मेल बहुत निराला है,
जिसमें ये मौजूद रहे, वो ही हिम्मतवाला है।
दीपक जोशी
18/07/2020