बुधवार, 2 सितंबर 2015

संत की परिभाषा।

साधु कौन होते हैं? क्या हम किसी को भी साधु बना सकते हैं? क्या हम खुद भी साधु बन सकते हैं? आज-कल के हाल को देख कर तो यही लगता है कि भारत में धर्म,आस्था व विश्वास के नाम पर कैसे लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है। इस संसार में कई धर्म हैं जिनके अनुयायी उस धर्म का पालन करते हैं तथा दिल से उसकी पूजा करते हैं। अगर में हिंदू धर्म की बात करुँ तो हमारे धर्म में ३३ करोड़ देवी देवताओँ  को पूजा जाता है। अब अगर कोई व्यक्ति इन देवी देवताओँ  के नाम से हमें मूर्ख बनाएगा तो क्या होगा? यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। चलिए पहले तो मैं आपको बताती हूँ कि साधु की परिभाषा क्या होनी चाहिए ।
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वह धार्मिक, परोपकारी, सदाचारी व्यक्ति हो जो धर्म, सत्य आदि का उपदेश देकर सम्पूर्ण मानव जाति व जीव जंतुओं एवं वनस्पति के कल्याण की बात सोचता हो,उसे साधु कहना ठीक होगा। वह व्यक्ति जो सांसारिक प्रपंच छोड़कर त्यागी और विरक्त हो गया हो उसे साधु  कहना ठीक होगा। जिसमें कोई आपत्तिजनक बात या दोष न हो तथा बहुत ही शांत भाव से रहने वाला सदाचारी और सुशील व्यक्ति को ही साधु कि संज्ञा दिया जाना उचित होगा। अन्धविश्वास से भरी इस दुनिया में पता नहीं हमें क्या-क्या देखना पड़ सकता है। मैं यह नहीं कहती कि ईश्वर नहीं है।  हमारे यहाँ तो अगर किसी पेड़ के नीचे एक पत्थर को भी रख उसमें टीका,चावल लगा कर फूल व कुछ पैसे चढ़ा दिए जाएं तो जो भी व्यक्ति वहां से गुज़रेगा वह अपना सर एक बार अवश्य ही झुकाएगा; ऐसी है हमारी आस्था। पर आज-कल कुछ लोग इसी बात का फायदा उठा रहे हैं और ईश्वर के नाम पर अपनी दुकानें  चला रहे हैं। चलिए अब मैं आपको एक कहानी सुनती हूँ।

एक गरीब परिवार कि लड़की की शादी एक छोटे-मोटे व्यापारी से हो जाती है। उसके व्यापर से उतनी कमाई नहीं हो पाती जिससे कि वह लोग ख़ुशी से रह सकें। फिर वह लड़की स्वयं छोटे-मोटे कार्य करके अपने घर का खर्चा चलाती है। उसके पति को यह सब अच्छा नहीं लगता और वह काम की तलाश में दूसरे शहर नौकरी ढूंढने निकल पड़ता है। कालांतर में वह लड़की एक बाबा के संपर्क में  आती है तथा उससे ६ अथवा ८ महीने दीक्षा लेने के उपरांत स्वयं को माँ दुर्गा का अवतार बताने लगती है और उसकी आड़ में लोगों को भ्रमित कर करोड़ों की संपत्ति जुटा लेती है। है न पूरी फ़िल्मी कहानी !

अब सवाल यह उठता है कि क्या इसको दुर्गा माँ का रूप समझना ठीक होगा? इसी प्रकार के अनेक द्रष्टान्त वर्तमान में अक्सर देखने को मिल जाते हैं। पर जब इन बड़े-बड़े,पढ़े-लिखे,पैसे वाले लोगों को इस प्रकार के साधु और साध्विओं  की पूजा करते हुऐ देखती हूँ, उनके नाम के भजनों में झूमते देखती हूँ तो ह्रदय को काफी कष्ट होता है। अपने प्रवचनों के दौरान इस प्रकार के साधु व साध्वी कहते हैं कि अमुक धनराशि दोगे तो सीधे स्वर्ग में बुकिंग हो जाएगी अथवा व्यापर में लाभ होगा या बहुत दिनों से रुके हुए सारे सामाजिक कार्य पूर्ण होजाएंगे आदि आदि.…… ।  अरे! ऐसा भी कहीं होता है, पूजा ही करनी है तो अपने माँ-बाप व बुजुर्गों की पूजा करो,उनका आशीर्वाद ही मिलेगा। उनकी व जरूरत मन्दों की सेवा करने से ही स्वर्ग प्राप्ति के साँथ-साँथ सारे सांसारिक कार्य भी सिद्ध होंगे। अतः मेरा यह मत है कि अकारण अन्धविश्वास में न फँस हमें अपने-अपने धर्मों के अनुसार बताये गए भक्ति मार्ग का ही अनुसरण करना चाहिए तथा यथा संभव मानव कल्याण के लिए कार्य कर इस जन्म में मिले अपने अमूल्य मानव जीवन को सफल बनाना चाहिए।

महामण्डलेश्वर, धर्मगुरु, पंडित व हर वो व्यक्ति जो धार्मिक हो उसे हमारे देश में एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। मैं यह नहीं कहती कि सभी संत एक से हैं, अच्छे और बुरे हर तरह के इंसान होते हैं इस दुनिया में पर यदि कोई व्यक्ति दावा करने लगे की वह देवी-देवता का रूप है तो यह बात मेरी समझ से परे है।

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