सोमवार, 7 जुलाई 2014

मेरी पहली हवाई यात्रा - 1

यह यात्रा भी बड़े मज़ेदार थी। आज तक साइकिल, कार, स्कूटर, बस, ट्रैन, ऑटो इत्यादि द्वारा सभी प्रकार की यात्रायें  की थी परन्तु वायु द्वारा यात्रा कभी नहीं की। जब भी कोई हवाई जहाज़ सर के ऊपर से गुज़रता तब मैं आसमान  की ओर  देखते हुए खुद से यह प्रश्न करती कि क्या कभी मैं भी इसमें बैठ पाऊँगी? जब वह मेरी आँखों से ओझल हो जाता तब मैं सर नीचा कर मुस्कुराती और अपने कार्य में पुनः लग जाती।

जिसने कभी हवाई अड्डा न देखा हो वह अब हवाई जहाज़ पर बैठने वाली थी। डर तो था ही परन्तु साथ ही में एक प्रकार का जोश भी था जो शायद मेरे चेहरे पर साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था। मैं सच में बहुत खुश थी। जिसे मैं हमेशा अपने सर के ऊपर आसमान  में उड़ता हुआ देखती थी अब मुझे उसमें बैठने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला था।

आखिरकार हम अपने खूब सारे सामान के साथ हवाई अड्डे में पहुंच चुके थे। सामने प्रवेश द्वार में दो गार्ड्स खड़े थे जो सभी के टिकट व पार-पत्र (पासपोर्ट)  की जाँच कर रहे थे।  अब हमें भी प्रवेश मिल गया था। अभी मेरे सपनों के विमान को उड़ने में दो घंटे बाकि थे तभी मेरे पति बोले चलो तब तक अपने आगमन की सूचना दे देते हैं। अगर आपको मेरी यह बात समझ न आई हो तो मैं चेक-इन करने की बात कर रही थी। :) जरुरत से जादा सामान होने पर जैसे-जैसे भार बढ़ा वैसे-वैसे इनका बटुवा हल्का होते गया। 

मेरे लिए तो सब कुछ नया था। पहली बार मैं अपने पति का अनुसरण कर रही थी। यह देख उन्हें भी बड़ा मज़ा आ रहा था।  ऐसा दिखावा कर रही थी मानो मेरा यहाँ आना पहली बार न हो। बोर्डिंग पास मिलते ही अब हमें सुरक्षा जाँच (सिक्योरिटी  चेक - जिसमे आपके साथ साथ आपके सामान की भी जाँच की जाती है) के लिए लाइन में लगना था। यहाँ लड़कों के लिए अलग लाइन व लड़कियों के लिए अलग ही लाइन बनी थी । इतना समझ आ रहा था कि यहाँ से कुछ दूर तक हमारे रास्ते अलग अलग हैं। 

अब मुझपे और मेरे बैग पर सिक्योरिटी चेक्ड का ठप्पा लग चुका था। फिर पता चला सिक्योरिटी जाँच  के बाद वापस नहीं जाने दिया जाता। अतः हम वहीं बैठ अपने जहाज़ का इंतज़ार करने लगे। मुझे रेस्टरूम जाना था। वैसे तो मैं जहाज़  में भी जा सकती थी पर अपने इस डर की वजह से मुझे लगा यहीं जाना ठीक होगा। मैंने अपने पति से सामान देखने के लिया कहा और मैं रेस्टरूम की ओर बढी तो देखा कि वहाँ इतनी भीड़ थी जितनी किसी ब्यूटी पार्लर में भी नहीं होती। कोई बालों को सवार रही थी तो कोई काजल लगा रही थी।  मैं भी सबकी  देखा देखी अपने बालों  को सेट करने लगी। बिना पानी लगाये बाल कुछ स्थिर नहीं हो रहे थे। पानी उस नल में था जिसे मैं खोल ही नहीं पा रही थी। बहुत कोशिशों के बाद पता नहीं कैसे वो नल खुल तो गया पर अब मुझसे वो बंद नहीं हो रहा था। मैंने आज से पहले ऐसे नल देखे थे जो घुमा घुमा कर खोले जाते थे तथा घुमा घुमा कर ही बंद हो जाते थे। पास में खड़ी महिला लिपस्टिक लगा रही थी। शर्मा शर्मी मैंने पूछ ही डाला "ये नल बंद नहीं हो रहा है कैसे बंद करूँ?" वह मुस्कुराई और बोली ऐसे ही छोड़ दो खुद से बंद हो जायेगा। यह मेरे लिए थोड़ा अजीब था पर मैंने भी उसे ऐसे ही छोड़ दिया और देखते देखते वह बंद हो गया। बड़े शहरों की बड़ी बातें। यहाँ नल के नीचे हाथ लगाने से पानी अता है और हटाने से पानी चला भी जाता है।

आगे के तमाम अनुभव अगली पोस्ट में। :) :)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें