मंगलवार, 22 जुलाई 2014

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका - जितना बड़ा नाम उतना बड़ा देश।

 बैंगलोर से सैन फ्रांसिस्को के लिए हमारी कनेक्टिंग फ्लाइट थी - बैंगलोर से हॉंगकॉंग, हॉंगकॉंग  से सैन फ्रांसिस्को। लग रहा था लाइफ मैं बहुत कुछ बदल रहा है। मैं बहुत खुश थी मुझे विदेश घूमने का अवसर मिल रहा था पर साथ ही थोड़ा सा डर भी था..... वैसे तो वीज़ा के लिए इंटरव्यू क्लियर हो ही गया था पर मेरे पति ने बताया कि सैन फ्रांसिस्को में भी एक छोटा सा इंटरव्यू होता है और डाक्यूमेंट्स पूरे  न होने पर वहाँ से भी लोगों को वापस भेज दिया जाता है। शायद वो मुझे डरा रहे थे। पर अब मैं किसी से डरने वाली नहीं थी क्योँकि मैं अमेरिका में थी। जैसे ही सैन फ्रांसिस्को एयरपोर्ट  से बाहर  निकले एक अफ्रीकन अमेरिकन अपनी काली रंग की लम्बी सी गाड़ी का दरवाजा खोले हमारे स्वागत में खड़ा था। वह काले रंग की लम्बी सी गाड़ी और कोई नहीं लिमोजीन थी। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था मैं इसमें बैठने वाली हूँ। मैंने टीवी में अमेरिका के प्रेसिडेंट बराक ओबामा को इसमें बैठे, हाथ हिलाते हुए देखा था। मैंने अपने पति की ओर  देखते हुए कहा शायद ये कुछ गलत समझ रहा है। पतिदेव मुस्कुराए और बोले "बैठो, तुम्हारे लिए ही दरवाज़ा खोला है।" उस वक्त मैं बहुत भावुक को गई थी कैसे ही मैंने अपने आँसू  रोके और बैठ गई। आह! क्या शानदार गाड़ी थी। वैसे कहा जाए तो गाड़ी नहीं चलता फिरता बार था वो। ऐसी गाड़ी पर मैं पहले कभी नहीं बैठी थी। गाड़ी तो बहुत बड़ी थी पर उसमें बैठने वाले हम दो ही थे। ऐसे मौकों में अपनों की बहुत याद आती है। हम दोनों के परिवार इसमें एक साथ आ सकते थे।

मैं लिमोजीन में बैठ कर गाड़ी का आनन्द ले ही रही थी कि अचानक मैंने अपने पति के चेहरे पर घबराहट सी देखी। वो अपने लैपटॉप बैग में कुछ ढूंढ रहे थे। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि  उनका बटुआ नहीं मिल रहा है। उनके कहने की देरी थी और मुझे वह फिल्मी दृश्य याद आने लगा जिसमे हीरो अपनी गर्लफ्रेंड को पहली बार डेट में लेकर जाता है और बिल देते वक़्त उसे पता चलता है की वह अपना बटुआ कहीं भूल आया है। या जब आप खाने के लिए किसी भोजनालय पर जाए और पैसे देते वक़्त आपको पता चले कि आपका बटुआ चोरी हो गया है .……तो क्या होगा?
वो आपको बर्तन धोने के लिए बोलेंगे या कुछ और? पर यहाँ का तो दृश्य ही कुछ अलग था। हम अमेरिका में एक शानदार सी गाड़ी लेमो में बैठे थे और पास में बटुआ नहीं।  मेरे पास कुछ इंडियन करेंसी थी जो यहाँ पर किसी काम की नहीं थी। सारे पैसे, कार्ड्स सब उसी बटुए में थे। मुझे तो अपने आगे जेल की सलाखें दिखाई दे रही थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या होगा। सैन फ्रांसिस्को के हवाई अड्डे में तो मैंने इनके पास वो बटुआ देखा था। ड्राइवर साहब भी हवा की तेजी से गाड़ी को भगा रहे थे। उनसे कहने में डर तो लग रहा था पर अब और कोई चारा भी नहीं था।

बचपन में मैंने सुना था कि अगर आपकी कोई चीज़ खो जाए तो अपने दुपट्टे पर एक गाँठ बांध लेनी चाहिए, गाँठ बाँधने से वह चीज़ मिल जाती है। मैंने कभी ऐसी बातों पर विश्वास नहीं किया पर पता नहीं क्योँ उस समय लगा एक बार इसे आज़माने में हर्ज़ ही क्या है। पर क्योँकि में अमेरिका में थी तो दुपट्टा कहाँ से लाती? मैंने जीन्स पहनी थी।  फिर मैंने एक नज़र अपने पर्स में डाली और देखा कि उसमें एक रुमाल पड़ा था।  सोचा यह भी तो कपड़ा ही है शायद काम कर जाए.……

एक बात तो माननी पड़ेगी यहाँ के लोग बहुत ईमानदार होते हैं। अगर यह हादसा भारत में किसी हवाई अड्डे पर हुआ होता तो बटुआ मिलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। वहाँ खोने पर आदमी नहीं मिलते बटुआ न मिलना तो छोटी सी बात है। क्योंकि हम अमेरिका में थे तो हमें हमारा बटुआ जैसा था वैसा ही मिल गया। हमारे वापस हवाई अड्डे जाते ही मेरे पति का नाम एनाउंस हो रहा था। इनका नाम सुनते ही मुझे लगा अब "बर्तन नहीं धोने पड़ेंगे।" :)

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

मेरी पहली हवाई यात्रा - 2

अब मेरे और विमान के बीच में एक एयरबस की ही दूरी रह गयी थी जो हमें ले जाने के लिए विमान दौड़ पट्टी पर हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। वैसे तो मुझे बस की सवारी कुछ खास पसंद नहीं पर आज सब कुछ अच्छा लग रहा था। विमान में पहुँचते ही मैंने एक लम्बी सी चैन की साँस भरी और झट से जाकर खिड़की के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गई। सुरक्षा पेटी लगा अब मैं जहाज़ के उड़ने का इंतज़ार करने लगी क्योंकि अब मैंने जहाज़ को भीतर से तो देख लिया था परन्तु अभी भी ऊंचाई से ज़मीन देखने की इच्छा थी।

उड़ने से पहले ही विमान में एयर होस्टेस आ गयी। पहले तो उन्होंने सबकी सीट बेल्ट देखी और फिर डेमो दिया कि किस तरह से सीट बेल्ट बांधनी है और किस तरह से हवा का दबाव कम होने पर उपर से मास्क खुद निकलकर आता है जिसे मुंह पर लगाकर आप सांस ले सकते हो। उसके बाद उन्होंने बताया कि लाइफ जैकेट जो कि विमान की सीट के नीचे होती है उसे कैसे पहनना है। तभी मेरे पति ने मुझसे एक प्रश्न किया। उनका प्रश्न था कि यदि माँ अपने बच्चे के साथ यात्रा कर रही है और तभी ऐसा कुछ होता है तो उसे किसे पहले बचाना चाहिए, अपने बच्चे को या खुद को? मेरा जवाब था बच्चे को। शायद मेरी जगह कोई भी होता वह यही जवाब देता। पर मैं गलत थी। उन्होंने बताया के दूसरों की मदद करने से पहले अपनी मदद करनी चाहिए।

विमान अब रनवे पर बड़ी तेजी से भागे जा रहा था। मैं बस उसके उड़ने का इन्तेज़ार कर रही थी। अचानक से देखते ही देखते वह उड़ने लगा। वाह! क्या नज़ारा था। कुछ दृश्य ऐसे होते हैं जिसे आप सिर्फ महसूस कर पाते हैं और वह हमेशा के लिए आपके दिल व् दिमाग में छप जाते हैं।  यह नज़ारा भी कुछ ऐसा ही था। ऐसा लग रहा था मानो मैं उड़ रही थी। मैं सच में हवा में थी। जैसे जैसे विमान की दूरी धरती से बढ़ती जा रही थी वैसे वैसे पूरा शहर छोटा होता जा रहा था। इतना सुन्दर नज़ारा मैंने आज से पहले कभी नही देखा था। देखते ही देखते अब मैं बादलों  के ऊपर थी।सच में बादलों  के ऊपर होने का अनुभव ही सबसे अलग अनुभव होता है। यह अनुभव आप भी नीचे दी गयी तस्वीर से ले सकते हैं।
अभी आपलोग सोच रहे होंगे के इंडिया में ऐसा नज़ारा कहा देखने को मिलता है तो आपकी जानकारी के लिए बता दूँ यह तस्वीर भारत की नहीं है। उस दिन तो मैं बहुत खुश थी इसलिए कोई भी तस्वीर नहीं ले सकी । यह तस्वीर मेरी दूसरी हवाई यात्रा की है जो विदेश की थी। इसके बारे में आपको अगले पोस्ट में बताती हूँ।  :)

सोमवार, 7 जुलाई 2014

मेरी पहली हवाई यात्रा - 1

यह यात्रा भी बड़े मज़ेदार थी। आज तक साइकिल, कार, स्कूटर, बस, ट्रैन, ऑटो इत्यादि द्वारा सभी प्रकार की यात्रायें  की थी परन्तु वायु द्वारा यात्रा कभी नहीं की। जब भी कोई हवाई जहाज़ सर के ऊपर से गुज़रता तब मैं आसमान  की ओर  देखते हुए खुद से यह प्रश्न करती कि क्या कभी मैं भी इसमें बैठ पाऊँगी? जब वह मेरी आँखों से ओझल हो जाता तब मैं सर नीचा कर मुस्कुराती और अपने कार्य में पुनः लग जाती।

जिसने कभी हवाई अड्डा न देखा हो वह अब हवाई जहाज़ पर बैठने वाली थी। डर तो था ही परन्तु साथ ही में एक प्रकार का जोश भी था जो शायद मेरे चेहरे पर साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था। मैं सच में बहुत खुश थी। जिसे मैं हमेशा अपने सर के ऊपर आसमान  में उड़ता हुआ देखती थी अब मुझे उसमें बैठने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला था।

आखिरकार हम अपने खूब सारे सामान के साथ हवाई अड्डे में पहुंच चुके थे। सामने प्रवेश द्वार में दो गार्ड्स खड़े थे जो सभी के टिकट व पार-पत्र (पासपोर्ट)  की जाँच कर रहे थे।  अब हमें भी प्रवेश मिल गया था। अभी मेरे सपनों के विमान को उड़ने में दो घंटे बाकि थे तभी मेरे पति बोले चलो तब तक अपने आगमन की सूचना दे देते हैं। अगर आपको मेरी यह बात समझ न आई हो तो मैं चेक-इन करने की बात कर रही थी। :) जरुरत से जादा सामान होने पर जैसे-जैसे भार बढ़ा वैसे-वैसे इनका बटुवा हल्का होते गया। 

मेरे लिए तो सब कुछ नया था। पहली बार मैं अपने पति का अनुसरण कर रही थी। यह देख उन्हें भी बड़ा मज़ा आ रहा था।  ऐसा दिखावा कर रही थी मानो मेरा यहाँ आना पहली बार न हो। बोर्डिंग पास मिलते ही अब हमें सुरक्षा जाँच (सिक्योरिटी  चेक - जिसमे आपके साथ साथ आपके सामान की भी जाँच की जाती है) के लिए लाइन में लगना था। यहाँ लड़कों के लिए अलग लाइन व लड़कियों के लिए अलग ही लाइन बनी थी । इतना समझ आ रहा था कि यहाँ से कुछ दूर तक हमारे रास्ते अलग अलग हैं। 

अब मुझपे और मेरे बैग पर सिक्योरिटी चेक्ड का ठप्पा लग चुका था। फिर पता चला सिक्योरिटी जाँच  के बाद वापस नहीं जाने दिया जाता। अतः हम वहीं बैठ अपने जहाज़ का इंतज़ार करने लगे। मुझे रेस्टरूम जाना था। वैसे तो मैं जहाज़  में भी जा सकती थी पर अपने इस डर की वजह से मुझे लगा यहीं जाना ठीक होगा। मैंने अपने पति से सामान देखने के लिया कहा और मैं रेस्टरूम की ओर बढी तो देखा कि वहाँ इतनी भीड़ थी जितनी किसी ब्यूटी पार्लर में भी नहीं होती। कोई बालों को सवार रही थी तो कोई काजल लगा रही थी।  मैं भी सबकी  देखा देखी अपने बालों  को सेट करने लगी। बिना पानी लगाये बाल कुछ स्थिर नहीं हो रहे थे। पानी उस नल में था जिसे मैं खोल ही नहीं पा रही थी। बहुत कोशिशों के बाद पता नहीं कैसे वो नल खुल तो गया पर अब मुझसे वो बंद नहीं हो रहा था। मैंने आज से पहले ऐसे नल देखे थे जो घुमा घुमा कर खोले जाते थे तथा घुमा घुमा कर ही बंद हो जाते थे। पास में खड़ी महिला लिपस्टिक लगा रही थी। शर्मा शर्मी मैंने पूछ ही डाला "ये नल बंद नहीं हो रहा है कैसे बंद करूँ?" वह मुस्कुराई और बोली ऐसे ही छोड़ दो खुद से बंद हो जायेगा। यह मेरे लिए थोड़ा अजीब था पर मैंने भी उसे ऐसे ही छोड़ दिया और देखते देखते वह बंद हो गया। बड़े शहरों की बड़ी बातें। यहाँ नल के नीचे हाथ लगाने से पानी अता है और हटाने से पानी चला भी जाता है।

आगे के तमाम अनुभव अगली पोस्ट में। :) :)

शनिवार, 5 जुलाई 2014

Is everything planned by god??

Life has a way of surprising you and leading you down unexpected paths. I could never have imagined that i would leave my family and India and come to America. There is a wonderful quote by Allen Saunder"Life is what happens to you while you were busy making other plans".

I know that everything is planned by God.Growing up every girl dreams of building her own home. I got married a year ago and I am very lucky to have him in my life.Everyone asks me - So how did you meet him? My simple response is "actually  it was all arranged" and they are amazed to hear that. Most of the people think that ours is a love marriage but it is not, at least not in the conventional sense :)

His aunt met with one of my relatives and they talked to each other and they decided to make this happen. We talked twice or thrice and we started liking each other and decided to marry.He has a very happy, caring voice. I would say that I was falling in love with his sweet voice.

You know what we met for the very first time at our wedding. :) Nobody believes this and sometimes even i don't believe it! Well, it is sounds odd but it is true :) People say marriage is a life changing experience.   After I got married my life change in ways that I had not imagined.

In this new world everything is not unfamiliar. There is a huge Indian diaspora in the United States and most Indians here preserve their traditions and culture as much as they would in India. Meeting them at various functions does help lighten my heart about being away from my country. But its also true that my life in America is different from the one that I had in India.This country gives me a certain freedom. Here I can do all the things of a normal life that I could only wish for in India like I can wear anything without the unease of being ogled at by men around me or I can go anywhere without being eve teased.

After marriage and moving to this new country I have made many new friends and they have never let me feel that I am a stranger in this place.It will certainly take me a little bit of time to fully learn the ways of America but I am getting there. :)