गुरुवार, 26 जून 2014

सप्ताह का अंत और एक नई शुरुआत |

अवकाश का दिन किसे अच्छा नहीं लगता। औरों का तो पता नहीं पर मुझे यह दिन बहुत पसंद है क्योँकि यह दिन और दिनों से अलग होता है। हमारे दिन की शुरुआत देर में उठने से होती है। नाश्ता कर हमलोग घूमने निकल पड़ते हैं। उस दिन मुझे खाना नहीं बनाना पड़ता अतः दोपहर का खाना हमलोग बाहर ही खाते हैँ। कभी सिनेमा देखने चले जाते है तो कभी खरीदारी करने। बस ऐसे ही यह दिन कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता। पर बीते सप्ताह के अंत में अत्यधिक वर्षा के कारण हम बहार न जा सके। ऐसा लग रहा था जैसे यह दिन नष्ट हो रहा हो। मेरी न सही भगवान ने इनकी सुन ली थी। महाशय जी दिन भर बिस्तर में पैर पसार कर फीफा वर्ल्ड कप देख रहे थे। फिर सोचा क्यों न इस दिन को घर में ही रहकर खास बनाया जाए पर कैसे यह समझ नहीं आ रहा था। मुझे कुछ ऐसा कार्य करना था जिसे करने में मुझे ख़ुशी मिले और मेरा दिन अच्छे से बीत जाये तभी बेकिंग करने का विचार दिमाग में आया। मैंने इस दिन से पहले कभी बेकिंग नहीं की थी अतः इसका क्या परिणाम होना है मुझे पहले से ही पता था। :) अगर आप भी इसका परिणाम जानना चाहते है तो नीचे दी गयी इन तस्वीरों को देखें।


यह दुनिया का पहला ऐसा केक था जो कट ही नहीं रहा था । :p :p 

शुक्रवार, 20 जून 2014

कमी

हमने अक्सर यह देखा है जब भी हम किसी कार्य को पहली बार करते हैं तो उसमें कोई न कोई कमी रह जाती है। फिर चाहे बाद में वह कार्य करते करते हम उसमें निपुण ही क्यों न हो जायें। उदाहरण के लिए मेरा पहला ब्लॉग ले लीजिये। मैं हमेशा से चाहती थी कि मेरा पहला ब्लॉग हिंदी भाषा में हो और कुछ हटकर हो। हिंदी भाषा में न लिख पाने के कारण में कुछ निराश सी हो गयी थी। तभी मेरे दिमाग में विचार आया क्यों न रोमनागरी का प्रयोग किया जाये और मैंने अपना पहला ब्लॉग इसी भाषा में लिख डाला। शाम को जब मेरे पति दफ्तर से घर पहुंचे और मैंने उन्हें अपने इस रोमनागरी लिपि में लिखे ब्लॉग के बारे मैं बताया तो उसे पढ़कर वह ठहाके मार कर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया हिंदी भाषा में लिखने का विकल्प इसी में होता है। :( यह सुन में बहुत निराश हो गयी तभी वह मेरी मन:स्थिति का तनाव दूर करते हुए बोले "निराश न हो, अनजाने में ही सही पर तुम्हारा पहला ब्लॉग थोड़ा हटकर ही है "  यह सुन मैं मुस्कुराई :)  और सोचने लगी कैसे इन्होंने मेरी नकारात्मक सोच को आसानी से बदल दिया।

बुधवार, 18 जून 2014

Mera pehla blog

Chanakya kehte hai kisi bhi karya ko shuru karne  se pehle svoyam(khud) se teen prashn karne chahiye -pehla prashn - k main  ye kyou kar rahi hu?? dusara- iske parirham(results) kya ho sakte hai??aur teesara-  kya me is karya me safal hungi?? ye teeno prashn mene khud se kiye aur mujhe jo javab mila vo aap sabhi logo k samne hai mene likhna shuru kar diya hai. Aaj main apna pehla blog likhne ja rahi hu.thoda darr aur bhot saari khushi ho rahi hai. darr is baat ka hai k main hamesha se apna pehla blog hindi( Devanagari ) me likhna chahti thi. hindi ki baat hi nirali hai pr mera computer mera saath nai de raha hai.aur khushi is baat ki hai k me likh rahi hu, Devanagari na sahi Romanagari(Roman+ Devanagari) hi sahi :) :)

zindagi me aaj pehli baar Romanagari lipi ka mahatv pata chal raha hai. bhala ho us soch  ka jisne is lipi ki khoj ki.sach me insaan chahe to kya nai kar sakta. 
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चाणक्य कहते हैं किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले स्वयम से तीन प्रश्न करने चाहिए।

पहला प्रश्न - मैं यह क्यों कर रही हूँ?
दूसरा - इसके परिणाम क्या हो सकते हैं? और
तीसरा - क्या मैं इस कार्य में सफल होऊँगी ?
जब गहराई से सोचने पर इन तीनों प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर मिल जाऐ , तभी आगे बढें। ये तीनों प्रश्न मैंने स्वयम से किये और मुझे जो जवाब मिला उसका परिणाम आप सभी लोगो के सामने है मैंने लिखना शुरू कर दिया है।

आज मैं अपना पहला ब्लॉग लिखने जा रही हूँ। थोड़ा डर और बहुत सारी ख़ुशी हो रही है। डर इस बात का है कि आज से पहले मैंने कभी कुछ लिखा नहीं। पता नहीं मैं अच्छा लिख भी पाऊँगी। और ख़ुशी इस बात की है कि मैं लिख रही हूँ। और बस ऐसे ही लिखते रहूँगी ।