कुछ अलग ही बात है इन रिश्तों की,
निभे तो सम्भले रहें, वरना बिखर जाते हैं।
इनके रहते हुए तो, ग़ैर भी लगते अपने,
ये न हों तो फिर, सगे भी मुँह चुराते हैं।
बड़ी एहमियत है, ज़िन्दगी में रिश्तों की,
बग़ैर इनके, कहाँ लोग सुकूँ पाते हैं।
उलझ गया हो जब कभी भी ज़िन्दगी का सफ़र,
ऐसे हर वक्त में, रिश्ते ही काम आते हैं।
हर सफल रिश्ते की विश्वास है मज़बूत कड़ी,
ज़रा सी ठेस से बरबस ये दरक जाते हैं।
जब भी देखा गया है, रिश्तों को पिघलते हुए,
भूल और चूक ही, कारण में नज़र आते हैं।
ग़लतफहमियाँ न आने दें रिश्तों में कभी,
इन्हीं के सबब से, रिश्ते ये बिगड़ जाते हैं।
न जताऐं कभी एहसान यूँ मदद करके,
इससे उपकारों के अंजाम बिखर जाते हैं।
दीपक जोशी
07/10/2020