बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

*रिश्ते*

कुछ अलग ही बात है इन रिश्तों की,

निभे तो सम्भले रहेंवरना बिखर जाते हैं।

इनके रहते हुए तो, ग़ैर भी लगते अपने,    

ये  हों तो फिरसगे भी मुँह चुराते हैं।

बड़ी एहमियत हैज़िन्दगी में रिश्तों की,

बग़ैर इनकेकहाँ लोग सुकूँ पाते हैं।

उलझ गया हो जब कभी भी ज़िन्दगी का सफ़र,

ऐसे हर वक्त मेंरिश्ते ही काम आते हैं।

हर सफल रिश्ते की विश्वास है मज़बूत कड़ी,

ज़रा सी ठेस से बरबस ये दरक जाते हैं। 

जब भी देखा गया हैरिश्तों को पिघलते हुए,

भूल और चूक हीकारण में नज़र आते हैं।

ग़लतफहमियाँ  आने दें रिश्तों में कभी,

इन्हीं के सबब सेरिश्ते ये बिगड़ जाते हैं।

 जताऐं कभी एहसान यूँ मदद करके,

इससे उपकारों के अंजाम बिखर जाते हैं।

                

दीपक जोशी 

07/10/2020